पुलिसवालों की शिकायत कैसे करें?

भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में जहां कानून और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन की होती है, वहीं यह भी एक सच्चाई है कि कभी-कभी पुलिसकर्मी अपनी सीमाएं लांघते हैं। आम नागरिकों को पुलिस से सुरक्षा की उम्मीद होती है, लेकिन जब वही पुलिसकर्मी अनावश्यक सख्ती, भ्रष्टाचार या गैरकानूनी व्यवहार करते हैं, तब आम आदमी के मन में यह सवाल उठता है  “अगर पुलिसवाले गलत व्यवहार करें, तो उनकी शिकायत कैसे करें?” इस लेख में हम विस्तार से इसी विषय पर चर्चा करेंगे  व्यावहारिक अनुभवों, कानूनी प्रक्रियाओं और अधिकारों के साथ।

सबसे पहले हमें यह समझना जरूरी है कि पुलिसकर्मी भी एक सरकारी कर्मचारी होते हैं और उनके भी अधिकार व दायित्व तय हैं। संविधान और पुलिस अधिनियम के अंतर्गत पुलिस को कानून का पालन कराने, जनता की रक्षा करने, और आपराधिक गतिविधियों को रोकने का दायित्व सौंपा गया है। लेकिन जब कोई पुलिस अधिकारी इन सीमाओं का उल्लंघन करता है  जैसे गाली-गलौज करना, बेवजह हिरासत में लेना, रिश्वत माँगना, फर्ज़ी मुकदमे दर्ज करना, या शारीरिक हिंसा करना  तो यह पूरी तरह अवैध होता है और इसके खिलाफ शिकायत की जा सकती है।

शिकायत करने के लिए सबसे पहला और आसान तरीका है  स्थानीय पुलिस स्टेशन में लिखित शिकायत देना। यदि शिकायत उसी थाने के किसी कर्मचारी के खिलाफ है, तो शिकायत वरिष्ठ अधिकारी (जैसे थाना प्रभारी या SHO) के नाम दी जानी चाहिए। शिकायत स्पष्ट भाषा में, तारीख, समय, स्थान और घटना का विवरण सहित लिखी जानी चाहिए। साथ ही यह ज़रूरी है कि शिकायत की एक कॉपी अपने पास रखें और उस पर थाने की मुहर लगवाकर रिसीविंग लें। यह बाद में कानूनी प्रक्रिया में साक्ष्य का काम करेगा।

अगर स्थानीय थाना सुनवाई नहीं करता, या आरोपी स्वयं उसी थाने में कार्यरत है, तो अगला स्तर होता है जिला पुलिस अधीक्षक (SP) या पुलिस उपायुक्त (DCP) के पास शिकायत करना। अधिकतर जिलों में SP/DCP ऑफिस में एक जनसुनवाई अनुभाग होता है जहां आम नागरिक अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। यहां आप व्यक्तिगत रूप से जा सकते हैं, लिखित शिकायत दे सकते हैं या डाक द्वारा भेज सकते हैं। आजकल कुछ राज्यों में ईमेल या ऑनलाइन शिकायत की भी सुविधा उपलब्ध है।

एक अन्य प्रभावी तरीका है  राज्य पुलिस मुख्यालय या महानिरीक्षक (DGP/IGP) को शिकायत भेजना। ये अधिकारी पूरे राज्य की पुलिस व्यवस्था के शीर्ष पर होते हैं और उनकी जिम्मेदारी होती है कि पूरे राज्य में कानून और व्यवस्था ठीक से चले। जब कोई मामला जिला स्तर पर नहीं सुलझता, तो लोग सीधे राज्य स्तर पर शिकायत दर्ज कराते हैं।

अब बात करते हैं ऑनलाइन शिकायत व्यवस्था की। भारत के कई राज्यों की पुलिस वेबसाइट पर अब ऑनलाइन कंप्लेंट रजिस्ट्रेशन की सुविधा उपलब्ध है। जैसे दिल्ली पुलिस, महाराष्ट्र पुलिस, उत्तर प्रदेश पुलिस, तमिलनाडु पुलिस आदि की वेबसाइटों पर एक “Citizen Services” या “Online Complaint” सेक्शन होता है जहां आप सीधे अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। इसमें आपको शिकायत का विवरण, आरोपी का नाम (अगर ज्ञात हो), समय, स्थान, और अपना मोबाइल नंबर/ईमेल देना होता है। शिकायत दर्ज होने के बाद एक रजिस्ट्रेशन नंबर दिया जाता है जिससे आप अपनी शिकायत की स्थिति ट्रैक कर सकते हैं।

महिला, बच्चे, अनुसूचित जाति/जनजाति या LGBTQ+ समुदाय से जुड़ी शिकायतों के लिए अलग संवेदनशील प्रावधान भी हैं। जैसे महिला पुलिस अधिकारी की गैरमौजूदगी में महिला को पूछताछ के लिए बुलाना गैरकानूनी है। ऐसे मामलों में अगर कोई पुलिसकर्मी गलत व्यवहार करता है, तो शिकायत तुरंत राज्य महिला आयोग या राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) में की जा सकती है। इनके पोर्टल्स पर भी ऑनलाइन शिकायत करने की सुविधा होती है और ये संस्थाएँ स्वत: संज्ञान भी ले सकती हैं।

अब एक विशेष संस्था का उल्लेख करना जरूरी है — राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)। यदि पुलिस द्वारा किसी नागरिक के साथ मानवाधिकार का हनन हुआ है, जैसे अवैध हिरासत, कस्टोडियल टॉर्चर, मुठभेड़ में झूठी कहानी, या किसी निर्दोष की गिरफ्तारी  तो इसकी शिकायत NHRC को दी जा सकती है। यह संस्था केंद्र सरकार के अधीन काम करती है और शिकायत की सुनवाई के बाद संबंधित राज्य सरकार से जवाब मांगती है।

इसके अतिरिक्त, कई राज्यों में लोकायुक्त या पुलिस शिकायत प्राधिकरण (Police Complaints Authority) की स्थापना की गई है। इनका उद्देश्य है कि पुलिस के खिलाफ शिकायतों की निष्पक्ष जांच की जाए और जनता को न्याय मिले। यह संस्था पुलिस के बाहर के स्वतंत्र अधिकारियों द्वारा संचालित होती है, जिससे निष्पक्षता बनी रहती है। शिकायत ऑनलाइन या डाक से भेजी जा सकती है।

अब सवाल उठता है कि क्या पुलिसकर्मी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराना संभव है? उत्तर है  हां, लेकिन यह प्रक्रिया जटिल हो सकती है। अगर कोई पुलिस अधिकारी गंभीर अपराध में लिप्त है, जैसे बलात्कार, हत्या, या गंभीर मारपीट, तो आप उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए न्यायालय (मजिस्ट्रेट) के पास जा सकते हैं। मजिस्ट्रेट आपकी अर्जी पर सुनवाई कर सकता है और पुलिस को जांच का आदेश दे सकता है।

यदि कोई पुलिसकर्मी धमकी देता है, या शिकायत वापस लेने का दबाव डालता है, तो यह भी कानूनन अपराध है। ऐसी स्थिति में आपको सबूत सुरक्षित रखने चाहिए  जैसे ऑडियो/वीडियो रिकॉर्डिंग, गवाहों के बयान, या लिखित सबूत। यह अदालत में आपके पक्ष को मजबूत करेगा।

शिकायत करते समय यह ध्यान देना ज़रूरी है कि आपकी भाषा संयमित हो, तथ्य स्पष्ट हों और किसी भी प्रकार की गाली-गलौज या अपशब्द से बचा जाए। शिकायत केवल बदले की भावना से नहीं, बल्कि न्याय की भावना से की जानी चाहिए। अगर आपके पास गवाह हैं, तो उनकी जानकारी भी शिकायत में अवश्य दें।

अब बात करते हैं कोर्ट में शिकायत की प्रक्रिया की। अगर सभी प्रशासनिक स्तर पर सुनवाई न हो, तो आप हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर कर सकते हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 226 और 32 नागरिकों को यह अधिकार देता है कि वे न्यायालय की शरण ले सकते हैं जब सरकारी अधिकारी, जिसमें पुलिस भी शामिल है, उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करे।

आजकल सोशल मीडिया भी एक बड़ा प्लेटफॉर्म बन गया है। कई बार पुलिस के दुर्व्यवहार के वीडियो वायरल होते हैं और मीडिया के माध्यम से सरकार को कार्रवाई के लिए मजबूर होना पड़ता है। लेकिन सोशल मीडिया सिर्फ एक माध्यम है, कानूनी प्रक्रिया का विकल्प नहीं। इसलिए कानूनी रास्ता अपनाना सबसे ज़रूरी है।

अब सवाल आता है  क्या पुलिस के खिलाफ शिकायत करने से कोई खतरा होता है? कुछ लोग डरते हैं कि शिकायत के बाद पुलिस उन्हें झूठे केस में फंसा सकती है या परेशान कर सकती है। यह डर कहीं हद तक सही भी है, लेकिन अगर आप कानूनी प्रक्रिया अपनाते हैं, दस्तावेज संभालकर रखते हैं, और सही मंच पर शिकायत करते हैं, तो आपको सुरक्षा मिलती है। जरूरत पड़े तो आप गवाह सुरक्षा योजना या कानूनी सहायता केंद्रों की मदद भी ले सकते हैं।

शिकायत करने के साथ-साथ यह भी ज़रूरी है कि हम अपने कर्तव्यों को भी समझें। अगर कोई पुलिसकर्मी सही तरीके से ड्यूटी कर रहा है, तो उसे सहयोग करना हमारी जिम्मेदारी है। लेकिन जब वही शक्ति का दुरुपयोग करे, तो उसके खिलाफ आवाज उठाना भी उतना ही ज़रूरी है।

अंततः यही कहा जा सकता है कि पुलिस जनता की रक्षा के लिए होती है, न कि डराने या अत्याचार करने के लिए। अगर कोई पुलिसकर्मी कानून से ऊपर उठकर गलत व्यवहार करता है, तो उसका विरोध करना आपका अधिकार है  और इसके लिए कई कानूनी मंच मौजूद हैं। डरने या चुप रहने से न तो समस्या हल होगी और न ही व्यवस्था सुधरेगी। जागरूक नागरिक बनिए, अपने अधिकार जानिए और गलत के खिलाफ सही कदम उठाइए।


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