भारत सरकार ने 1 जून 2024 से देशभर में ड्राइविंग लाइसेंस से संबंधित नियमों में बड़े बदलाव लागू किए हैं। इन बदलावों का उद्देश्य न केवल लाइसेंस प्रक्रिया को पारदर्शी और सरल बनाना है, बल्कि सड़क सुरक्षा को भी सुदृढ़ करना है। अब ड्राइविंग टेस्ट केवल आरटीओ (RTO) कार्यालय में ही नहीं, बल्कि प्रमाणित निजी प्रशिक्षण संस्थानों (Private Driving Training Centres) में भी लिया जा सकता है। यह कदम लंबे समय से चली आ रही आरटीओ की भीड़, भ्रष्टाचार और समय की बर्बादी को कम करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि ये नए नियम क्या हैं, इसका आम नागरिकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा और यह भारत की परिवहन व्यवस्था के लिए कितना महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
- ड्राइविंग टेस्ट के लिए अब आरटीओ जाना जरूरी नहीं
अब तक, भारत में ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने के लिए एक उम्मीदवार को स्थानीय क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO) में जाकर लिखित और व्यावहारिक परीक्षण देना पड़ता था। यह प्रक्रिया कई बार लंबी, जटिल और भ्रष्टाचार से भरी मानी जाती थी। नए नियमों के अनुसार अब उम्मीदवारों को प्रमाणित निजी ड्राइविंग प्रशिक्षण संस्थानों से प्रशिक्षण लेने के बाद वही संस्थान उनका परीक्षण कर सकता है। पास करने पर, उन्हें आरटीओ जाने की जरूरत नहीं होगी — लाइसेंस की प्रक्रिया ऑनलाइन ही पूरी हो सकेगी।
- निजी ड्राइविंग प्रशिक्षण संस्थान को लाइसेंस देने की प्रक्रिया
इन निजी संस्थानों को सरकार की ओर से सख्त मापदंडों के अनुसार मान्यता दी जाएगी। केंद्र सरकार ने इन संस्थानों को लाइसेंस देने के लिए राज्यों को दिशा-निर्देश दिए हैं। इसके अंतर्गत निम्नलिखित शर्तें लागू होंगी:
संस्थान के पास कम से कम 1 एकड़ ज़मीन होनी चाहिए (हल्के मोटर वाहनों के लिए) और 2 एकड़ (भारी मोटर वाहनों के लिए)।
ड्राइविंग टेस्ट के लिए एक ट्रैक की व्यवस्था होना अनिवार्य है।
प्रशिक्षकों के पास कम से कम हाई स्कूल की शिक्षा हो और उन्हें ट्रेनर सर्टिफिकेट प्राप्त हो।
संस्थान के पास बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्लासरूम, कंप्यूटर लैब, फर्स्ट एड किट, और एम्बुलेंस जैसी सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए।
- नए नियमों के अंतर्गत पाठ्यक्रम (Curriculum)
सरकार ने पाठ्यक्रम को भी स्पष्ट किया है। हल्के वाहन (LMV) के लिए 29 घंटे का कोर्स और भारी वाहन (HMV) के लिए 38 घंटे का प्रशिक्षण आवश्यक होगा। इन कोर्स में थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनों प्रकार की ट्रेनिंग शामिल होगी।
- लाइसेंस टेस्ट में पारदर्शिता और तकनीकी सुधार
निजी संस्थानों को केवल प्रशिक्षण ही नहीं, बल्कि परीक्षण (Test) की भी जिम्मेदारी दी गई है। यह परीक्षण पूरी तरह से डिजिटल रूप में रिकॉर्ड किया जाएगा ताकि किसी भी तरह की धांधली से बचा जा सके। ट्रैक पर लगे सीसीटीवी कैमरे, जीपीएस, और सेंसर आधारित वाहनों से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि हर उम्मीदवार का परीक्षण निष्पक्ष हो।
- क्या इससे भ्रष्टाचार कम होगा?
यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है। लंबे समय से आरोप लगते रहे हैं कि कई उम्मीदवार बिना टेस्ट दिए या “बिचौलियों” की मदद से ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त कर लेते हैं। इस नई प्रणाली से ऐसी गतिविधियों पर अंकुश लग सकता है क्योंकि अब निजी संस्थान की जवाबदेही भी तय होगी और टेस्ट की पूरी प्रक्रिया रिकॉर्ड की जाएगी। पारदर्शिता और जवाबदेही से सिस्टम की विश्वसनीयता बढ़ेगी।
- आम लोगों को क्या लाभ मिलेगा?
इस नई व्यवस्था से कई फायदे होंगे:
RTO की भीड़ कम होगी।
उम्मीदवार को टेस्ट के लिए लंबे समय तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
प्रक्रिया तेज और सरल हो जाएगी।
तकनीकी इंटरफेस से टेस्ट निष्पक्ष होंगे।
निजी संस्थानों के कारण विकल्प बढ़ेंगे और प्रतियोगिता से सेवाएं बेहतर होंगी।
- शुल्क में बदलाव और निजी संस्थान की फीस
अब सवाल उठता है कि इन निजी संस्थानों की फीस कितनी होगी? इसका जवाब है कि शुल्क हर राज्य में अलग हो सकता है, क्योंकि यह संस्थान निजी होंगे। हालांकि सरकार द्वारा एक अधिकतम शुल्क निर्धारित किया जाएगा, ताकि आम जनता पर अधिक आर्थिक बोझ न पड़े। कई संस्थान 3,000 से 7,000 रुपये के बीच प्रशिक्षण और टेस्ट की फीस ले सकते हैं।
- नई व्यवस्था के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया
कुछ लोग इस बदलाव को लेकर उत्साहित हैं, जबकि कुछ इसे निजीकरण का एक और कदम मान रहे हैं। लेकिन अगर संस्थानों की निगरानी अच्छी तरह से की जाए, तो यह प्रणाली भारत के लिए एक क्रांतिकारी कदम हो सकती है। यह देखना भी रोचक होगा कि छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में यह व्यवस्था कैसे लागू होती है।
- निजी संस्थानों की निगरानी और लाइसेंस रद्द करने का प्रावधान
सरकार ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई निजी संस्थान निर्धारित मापदंडों का पालन नहीं करता है, तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। साथ ही, उसके द्वारा जारी किए गए लाइसेंस की वैधता भी जांच के दायरे में आ जाएगी। इस तरह से सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि केवल योग्य और सक्षम संस्थान ही लाइसेंस प्रक्रिया का हिस्सा बनें।
- लर्नर लाइसेंस की प्रक्रिया भी डिजिटल
अब लर्नर लाइसेंस के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया भी पूरी तरह ऑनलाइन हो गई है। उम्मीदवार को parivahan.gov.in या राज्य परिवहन विभाग की वेबसाइट पर जाकर आवेदन करना होता है। ऑनलाइन टेस्ट में पास होने के बाद लर्नर लाइसेंस डाउनलोड किया जा सकता है।
- डिजिटल ट्रैकिंग और UIN (Unique Identification Number)
हर उम्मीदवार को अब एक यूनिक आईडी नंबर दिया जाएगा जिससे उनकी ट्रेनिंग, टेस्ट और ड्राइविंग प्रदर्शन का रिकॉर्ड रखा जा सकेगा। इससे सरकार को ड्राइवरों की गुणवत्ता पर नजर रखने में मदद मिलेगी।
- कम उम्र में ड्राइविंग पर सख्ती
यदि कोई नाबालिग गाड़ी चलाते हुए पकड़ा जाता है, तो उसके माता-पिता पर ₹25,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है और उनका वाहन भी जब्त किया जा सकता है। साथ ही उस नाबालिग का लाइसेंस 18 साल की उम्र तक रोका जा सकता है। इससे अवयस्कों के वाहन चलाने पर लगाम लगाई जा सकेगी।
- सड़क सुरक्षा के लिए एक बड़ा कदम
ये नए नियम सड़क सुरक्षा के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं। आंकड़ों के अनुसार भारत में सड़क दुर्घटनाओं में हर साल लाखों लोग मारे जाते हैं। इन दुर्घटनाओं में से बड़ी संख्या ऐसे लोगों की होती है जिनके पास ड्राइविंग की उचित ट्रेनिंग नहीं होती। नए नियमों के लागू होने से ट्रेनिंग की गुणवत्ता में सुधार होगा और दुर्घटनाओं में कमी आने की उम्मीद की जा रही है।
- राज्य सरकारों की भूमिका
इन नियमों को लागू करने में राज्य सरकारों की भूमिका अहम है। केंद्र सरकार ने दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं, लेकिन इनका पालन करना राज्य सरकारों के ऊपर निर्भर करता है। कुछ राज्य जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु ने पहले ही इस दिशा में कदम उठा लिए हैं और निजी संस्थानों को मंजूरी देना शुरू कर दिया है।
- भविष्य में क्या बदलाव संभव हैं?
सरकार ने यह संकेत दिए हैं कि भविष्य में ड्राइविंग टेस्ट में AI (Artificial Intelligence) आधारित प्रणाली का भी उपयोग किया जा सकता है, जिससे इंसानी हस्तक्षेप और पक्षपात को और कम किया जा सके। साथ ही, वाहन चालकों की सतत निगरानी के लिए ड्राइविंग स्कोर जैसी प्रणाली भी लागू की जा सकती है।
- महिलाओं और दिव्यांगों के लिए विशेष सुविधा
सरकार का लक्ष्य है कि ड्राइविंग लाइसेंस सभी वर्गों के लिए सुलभ हो। इसके तहत विशेष रूप से महिलाओं और दिव्यांग लोगों के लिए अनुकूल वाहन, टेस्ट सेंटर और प्रशिक्षकों की व्यवस्था की जा रही है। इससे उन्हें आत्मनिर्भरता की दिशा में मदद मिलेगी।
- ड्राइविंग लाइसेंस नवीनीकरण में भी सुविधा
ड्राइविंग लाइसेंस के नवीनीकरण की प्रक्रिया को भी सरल किया गया है। अब ऑनलाइन आवेदन और टेस्ट देकर नवीनीकरण संभव है, और इसके लिए आरटीओ कार्यालय में जाने की आवश्यकता नहीं है, बशर्ते सभी दस्तावेज़ सही और डिजिटल हों।
- मोबाइल ऐप और डिजिटल पोर्टल की भूमिका
सरकार ने मोबाइल ऐप्स और डिजिटल पोर्टलों की मदद से पूरा लाइसेंसिंग सिस्टम पारदर्शी बनाने का प्रयास किया है। अब ड्राइविंग स्कूलों की लिस्ट, स्लॉट बुकिंग, टेस्ट रिकॉर्डिंग आदि सब कुछ ऐप्स के माध्यम से ट्रैक किया जा सकता है।
कुछ संगठनों का मानना है कि यदि निजी संस्थानों पर सख्त निगरानी नहीं रखी गई, तो यह एक नई तरह का “ड्राइविंग लाइसेंस माफिया” खड़ा कर सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि सरकार निरंतर मॉनिटरिंग, ऑडिट और सर्वेक्षण करती रहे।
नए आरटीओ नियम और निजी ड्राइविंग टेस्ट सेंटर भारत में परिवहन प्रणाली के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव हैं। इससे जहां एक ओर प्रक्रिया सरल और पारदर्शी हुई है, वहीं दूसरी ओर सड़क सुरक्षा की दिशा में भी मजबूत कदम उठाए गए हैं। हालांकि इस व्यवस्था की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसे कितनी ईमानदारी और सतर्कता से लागू किया जाता है। यदि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर इस प्रणाली को मजबूत करती हैं तो यह भारत को एक सुरक्षित और आधुनिक परिवहन व्यवस्था की ओर ले जाने में अहम भूमिका निभा सकता है।