“क्या पीछे बैठने वाले यात्रियों के लिए सीट बेल्ट पहनना अनिवार्य है?”

भारत में सड़क सुरक्षा का मुद्दा कोई नया नहीं है। हर साल हजारों सड़क दुर्घटनाएँ होती हैं, जिनमें लाखों लोग घायल होते हैं और हजारों अपनी जान गंवा बैठते हैं। जब भी सड़क सुरक्षा की बात होती है, ध्यान अक्सर ड्राइवर या आगे बैठे यात्री की सुरक्षा पर केंद्रित रहता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जो लोग गाड़ी की पिछली सीट पर बैठते हैं, उनके लिए भी सुरक्षा उतनी ही जरूरी है? और क्या उनके लिए भी सीट बेल्ट पहनना उतना ही जरूरी है जितना ड्राइवर और फ्रंट पैसेंजर के लिए?

यह प्रश्न आज के समय में बहुत प्रासंगिक हो गया है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि क्या पीछे बैठने वाले यात्रियों के लिए सीट बेल्ट पहनना अनिवार्य है, इसका कानूनी आधार क्या है, वैज्ञानिक और सुरक्षा कारण क्या हैं, सामाजिक व्यवहार कैसा है, और इस नियम का पालन कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है।

भारत में सीट बेल्ट कानून की पृष्ठभूमि

भारत सरकार ने सड़क सुरक्षा को बेहतर बनाने के लिए समय-समय पर कई नियम बनाए हैं। Motor Vehicles Act, 1988 और इसके तहत बने Central Motor Vehicles Rules (CMVR), 1989 इन सभी नियमों की नींव हैं।

इन नियमों के अनुसार:

ड्राइवर और सामने बैठे यात्री के लिए सीट बेल्ट पहनना कई सालों से अनिवार्य है।

लेकिन 2019 में हुए संशोधन के बाद, अब पीछे बैठने वाले यात्रियों के लिए भी सीट बेल्ट पहनना कानूनी रूप से अनिवार्य कर दिया गया है।


इसका स्पष्ट उल्लेख Rule 138(3) of CMVR में किया गया है, जो कहता है कि यदि कोई वाहन सीट बेल्ट से लैस है (front हो या rear), तो उसे पहनना अनिवार्य होगा।


क्या यह नियम लागू होता है?

कई लोगों को भ्रम है कि यह नियम केवल ड्राइवर और फ्रंट सीट पैसेंजर के लिए होता है। लेकिन 2022 में दिल्ली में एक सड़क दुर्घटना में एक प्रसिद्ध उद्योगपति की मौत के बाद यह मुद्दा फिर से चर्चा में आया। उस घटना में पीछे बैठे व्यक्ति ने सीट बेल्ट नहीं पहनी थी और टक्कर के दौरान उनकी जान चली गई।

उस घटना के बाद Ministry of Road Transport and Highways (MoRTH) ने स्पष्ट रूप से यह बयान जारी किया कि:

> “Rear seat occupants must wear seat belts, and not wearing it will now attract a penalty.”



इस बयान के बाद देश भर में इस नियम को और कड़ाई से लागू करने की प्रक्रिया शुरू हुई।


पीछे सीट बेल्ट पहनना क्यों जरूरी है?

बहुत से लोग सोचते हैं कि आगे की सीट पर दुर्घटना का खतरा अधिक होता है, इसलिए सीट बेल्ट जरूरी है। लेकिन वैज्ञानिक अध्ययन और सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों की रिपोर्ट कुछ और ही कहती हैं।

1. टक्कर की स्थिति में फिजिक्स सब पर बराबर लागू होता है
यदि कोई वाहन 80-100 किमी/घंटा की रफ्तार से चल रहा हो और अचानक टकराए, तो पीछे बैठा व्यक्ति बिना सीट बेल्ट के उड़कर आगे के डैशबोर्ड या सीट से टकरा सकता है। कई बार वह सामने बैठे व्यक्ति को भी गंभीर रूप से घायल कर देता है।


2. “Second Impact” खतरा
जब कोई वाहन टकराता है, तो वाहन रुक जाता है, लेकिन अंदर बैठे लोगों का शरीर गति में होता है। यदि पीछे बैठे व्यक्ति ने सीट बेल्ट नहीं पहनी हो, तो उसका शरीर वाहन की गति से आगे बढ़ता है और वह खुद भी चोट खाता है और दूसरों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।


3. एयरबैग पर्याप्त नहीं हैं
लोग मानते हैं कि एयरबैग होने से सीट बेल्ट की जरूरत नहीं है। लेकिन एयरबैग तभी प्रभावी होते हैं जब व्यक्ति सीट बेल्ट लगाए हुए हो। बिना सीट बेल्ट के एयरबैग गंभीर चोट भी पहुंचा सकते हैं।


4. बच्चों और बुजुर्गों के लिए ज्यादा जरूरी
जो लोग पीछे बैठते हैं उनमें अक्सर बुजुर्ग या बच्चे होते हैं। उनके लिए सीट बेल्ट सुरक्षा की एकमात्र भरोसेमंद साधन है।



क्या पुलिस इस नियम को लागू करती है?

हालांकि कानून में स्पष्टता है, लेकिन व्यवहार में अब तक पुलिस पीछे बैठने वाले यात्रियों पर सीट बेल्ट न पहनने के लिए चालान कम ही काटती थी। लेकिन अब परिस्थितियाँ बदल रही हैं।

2022 के बाद, दिल्ली, मुंबई, पुणे, बेंगलुरु और अन्य प्रमुख शहरों में ट्रैफिक पुलिस ने:

ट्रैफिक सिग्नल पर गाड़ियों को रोका और पीछे बैठे लोगों को सीट बेल्ट न पहनने पर चेतावनी दी।

कई शहरों में ₹1,000 तक का चालान भी काटा गया।

सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाए गए।


इसके अलावा, नई गाड़ियों में पीछे के यात्रियों के लिए भी सीट बेल्ट अलर्ट सिस्टम लगाया जा रहा है, जो बिना सीट बेल्ट के गाड़ी शुरू होते ही अलार्म बजाता है।


सामाजिक व्यवहार और मानसिकता

भारत में बहुत से लोग अभी भी पीछे बैठने वाले यात्री के लिए सीट बेल्ट को “अनावश्यक”, “असुविधाजनक”, या “अंग्रेजी आदत” मानते हैं। उन्हें लगता है कि पीछे बैठकर सीट बेल्ट पहनना हास्यास्पद है या आराम में बाधा डालता है।

यह सोच बदलना सबसे आवश्यक है। क्योंकि जब तक आम जनता यह नहीं समझेगी कि सीट बेल्ट जीवन रक्षा का उपकरण है, तब तक कोई कानून भी पूरी तरह से असरदार नहीं हो पाएगा।

टैक्सी और कैब में क्या होता है?

एक और महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि ज्यादातर लोग जब ओला, उबर या टैक्सी में बैठते हैं, तो पीछे सीट बेल्ट पहनने का ख्याल ही नहीं आता।

कई टैक्सी चालकों ने पीछे की सीट से सीट बेल्ट हटा दी होती है या उन्हें सीट में दबा दिया होता है।

यात्री खुद भी उनसे इसे बाहर निकालने या इस्तेमाल करने की मांग नहीं करते।


सरकार ने स्पष्ट किया है कि कैब, टैक्सी और कमर्शियल गाड़ियों में भी यह नियम पूरी तरह लागू होता है।

क्या सीट बेल्ट से मौतें सचमुच कम होती हैं?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद (India Road Safety Council) के आंकड़े बताते हैं कि:

सीट बेल्ट पहनने से सामने की सीट पर 45–50% और पीछे की सीट पर 25–30% तक जान बचाई जा सकती है।

जो लोग सीट बेल्ट नहीं पहनते, उनकी मृत्यु की संभावना दोगुनी होती है।


यही वजह है कि अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में पीछे बैठने वालों के लिए सीट बेल्ट न पहनना जुर्माना और लाइसेंस निलंबन का कारण बनता है।


1. जागरूकता अभियान
सरकार, स्कूल, कॉलेज और सामाजिक संस्थाएं मिलकर इस विषय पर जन-जागरूकता फैलाएं। टीवी, रेडियो, सोशल मीडिया और फिल्मों के माध्यम से लोगों को बताया जाए कि सीट बेल्ट जीवन रक्षक है।


2. टैक्सी ऑपरेटरों को निर्देश
टैक्सी मालिकों को आदेश दिया जाए कि उनकी गाड़ियों की हर सीट पर कार्यशील सीट बेल्ट हो।


3. कार निर्माता कंपनियों की भूमिका
नई गाड़ियों में पीछे के लिए भी ऑटोमेटेड अलर्ट सिस्टम और इंटीग्रेटेड सीट बेल्ट तकनीक दी जाए।


4. पुलिस को प्रशिक्षण और दिशा-निर्देश
ट्रैफिक पुलिस को विशेष रूप से निर्देशित किया जाए कि वे पीछे सीट बेल्ट की जांच करें और नियम तोड़ने वालों पर कार्रवाई करें।

पीछे बैठे यात्रियों के लिए सीट बेल्ट पहनना न केवल कानूनी रूप से अनिवार्य है, बल्कि यह नैतिक और व्यावहारिक रूप से भी आवश्यक है। यह केवल एक पट्टा नहीं है, बल्कि जीवन रक्षक कवच है, जो न सिर्फ उस व्यक्ति को बचाता है जो पहन रहा है, बल्कि पूरे वाहन के बाकी यात्रियों को भी सुरक्षा देता है।

हमारे देश में जब तक लोगों की सोच नहीं बदलेगी, तब तक दुर्घटनाएँ होती रहेंगी। यह समय है कि हम केवल कानून के डर से नहीं, बल्कि खुद की और अपनों की सुरक्षा के लिए सीट बेल्ट पहनें—चाहे हम सामने बैठें या पीछे।

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