“क्या पुलिस बिना बताए आपकी गाड़ी टो कर सकती है?”

भारत में सड़क पर खड़ी गाड़ियों को देखकर अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या पुलिस या ट्रैफिक विभाग किसी भी समय किसी भी वाहन को उठा सकती है? और क्या वाहन मालिक को इसकी जानकारी देना जरूरी है? कई लोगों ने यह अनुभव किया है कि उनकी गाड़ी खड़ी थी, लेकिन जब वे वापस लौटे, तो वह वहां नहीं थी—बाद में पता चला कि पुलिस ने उसे टो कर लिया है। यह स्थिति लोगों को परेशान करती है, और वे सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्या यह कार्रवाई कानूनन सही है और क्या बिना सूचित किए वाहन उठाया जाना न्यायसंगत है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि भारतीय कानून इस विषय में क्या कहता है, क्या प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए, पुलिस के क्या अधिकार हैं और वाहन मालिक के पास क्या विकल्प उपलब्ध हैं।

सबसे पहले हमें यह समझना चाहिए कि ट्रैफिक नियमों का पालन केवल यातायात को व्यवस्थित रखने के लिए ही नहीं, बल्कि सुरक्षा और सार्वजनिक हित के लिए भी किया जाता है। यदि कोई वाहन ऐसी जगह खड़ा है जहां वह यातायात में बाधा उत्पन्न कर रहा है, किसी आपातकालीन वाहन को रोक रहा है, किसी प्रवेश द्वार या मोड़ पर है, तो ट्रैफिक पुलिस को उसे हटाने का अधिकार होता है। यह अधिकार मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 122 और 127 के तहत आता है।

धारा 122 कहती है कि कोई भी वाहन चालक किसी सार्वजनिक स्थान पर अपना वाहन ऐसे तरीके से नहीं छोड़ सकता जिससे वह सड़क पर बाधा बने या खतरा उत्पन्न करे। वहीं धारा 127 यह स्पष्ट करती है कि यदि कोई वाहन सड़क पर अव्यवस्थित रूप से खड़ा है या वह ‘अबैंडन्ड’ माना जा रहा है (यानी छोड़ दिया गया है), तो ट्रैफिक पुलिस उस वाहन को हटवा सकती है, यानी टो कर सकती है। इस कार्रवाई का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि यातायात में बाधा न आए और सड़कें सुचारु रूप से कार्य करें।

लेकिन क्या इस कार्रवाई से पहले वाहन मालिक को सूचित किया जाना चाहिए? यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है और इसके दो पक्ष हैं—कानूनी और व्यवहारिक। कानून यह नहीं कहता कि हर बार टो करने से पहले वाहन मालिक को फोन किया जाए या सूचना दी जाए। खासकर यदि गाड़ी “नो पार्किंग ज़ोन” में खड़ी है या उसने ट्रैफिक को रोक रखा है, तो ट्रैफिक पुलिस को उसे तुरंत हटाने का अधिकार है, भले ही उस समय गाड़ी का मालिक वहां न हो।

लेकिन व्यवहारिक दृष्टिकोण से यह उचित माना जाता है कि यदि संभव हो तो पहले वाहन के मालिक को सूचित किया जाए, विशेषकर यदि गाड़ी ऐसे स्थान पर खड़ी है जहां असमंजस की स्थिति है—जैसे कोई स्पष्ट ‘नो पार्किंग’ का बोर्ड न लगा हो या गाड़ी आंशिक रूप से सड़क पर और आंशिक रूप से फुटपाथ पर खड़ी हो। कई शहरों में अब ट्रैफिक पुलिस पहले वाहन के विंडस्क्रीन पर नोटिस चिपका देती है या QR कोड स्कैन करके चालान जनरेट कर देती है, और फिर वाहन को टो करती है।

अब बात करते हैं प्रोटोकॉल की—क्या पुलिस को कुछ नियमों का पालन करना होता है जब वे गाड़ी टो करते हैं? हां, यह बिल्कुल जरूरी है। सबसे पहले उन्हें टो करने से पहले फोटो या वीडियो लेना चाहिए ताकि प्रमाण रहे कि गाड़ी गलत तरीके से खड़ी थी। दूसरा, वाहन को ट्रैफिक विभाग के मान्यता प्राप्त यार्ड में ले जाना चाहिए, न कि किसी निजी स्थान पर। तीसरा, टो करने के बाद चालान की रसीद वाहन मालिक को देना या ऑनलाइन पोर्टल पर चालान अपडेट करना जरूरी होता है।

इन सबके बावजूद अगर कोई व्यक्ति महसूस करता है कि उसकी गाड़ी को गलत तरीके से टो किया गया है, तो उसके पास कुछ अधिकार होते हैं। सबसे पहले वह स्थानीय ट्रैफिक कंट्रोल रूम से संपर्क कर सकता है और मामले की जानकारी ले सकता है। यदि कोई गलती पाई जाती है, तो आप ट्रैफिक विभाग में शिकायत दर्ज कर सकते हैं। कई शहरों में अब यह शिकायत मोबाइल ऐप जैसे mParivahan या ट्रैफिक पुलिस की वेबसाइट से भी की जा सकती है।

अक्सर लोग यह सोचते हैं कि गाड़ी सड़क किनारे खड़ी है, इसलिए उसे टो नहीं किया जा सकता। लेकिन यह समझना जरूरी है कि सड़क किनारे की भी एक सीमा होती है, और यदि वहां कोई ‘नो पार्किंग’ या ‘टो-अवे ज़ोन’ का चिन्ह लगा है, तो वहां गाड़ी खड़ी करना नियमों का उल्लंघन है। दिल्ली, मुंबई, पुणे, बेंगलुरु जैसे शहरों में ट्रैफिक की भीड़ को देखते हुए सैकड़ों स्थानों को ‘टो-अवे’ घोषित किया गया है, और वहां ट्रैफिक पुलिस बिना किसी अतिरिक्त नोटिस के वाहन को हटा सकती है।

एक अन्य मिथक यह है कि यदि गाड़ी का मालिक वाहन के पास मौजूद है और पुलिस टो करने आई है, तो वे उसे टो नहीं कर सकते। यह पूरी तरह सही नहीं है। यदि ट्रैफिक नियम का उल्लंघन हुआ है और गाड़ी ऐसी जगह खड़ी है जहां वह हटाने योग्य है, तो पुलिस उसे उठा सकती है, भले ही मालिक वहीं क्यों न हो। हां, यदि मालिक तुरंत गाड़ी हटा लेता है और जुर्माना भरने को तैयार है, तो कई बार पुलिस मानवीय दृष्टिकोण से गाड़ी को न उठाकर केवल चालान करके छोड़ देती है।

कई बार यह भी देखा गया है कि निजी टो वाहन, जिन्हें ट्रैफिक पुलिस द्वारा अधिकृत किया गया होता है, वाहन टो करने के बाद अतिरिक्त राशि मांगते हैं या वाहन को छोड़ने के लिए रिश्वत जैसी स्थिति उत्पन्न करते हैं। यह पूरी तरह गैरकानूनी है। हर टो यार्ड की एक अधिकृत चार्ज लिस्ट होती है, जैसे कि टोइंग चार्ज, चालान राशि आदि। वाहन मालिक को इसका भुगतान केवल अधिकृत रसीद के बदले ही करना चाहिए। किसी भी अतिरिक्त मांग की शिकायत ट्रैफिक विभाग में की जा सकती है।

अब यह जानना भी जरूरी है कि यदि आपकी गाड़ी टो कर ली गई है, तो उसे कैसे वापस लिया जाए? इसके लिए सबसे पहले आपको नजदीकी ट्रैफिक पोस्ट या पुलिस स्टेशन में संपर्क करना होगा जहां वाहन ले जाया गया है। वहां आपको चालान भरना होगा और वाहन के मूल दस्तावेज दिखाने होंगे। इसके बाद आपको ‘रिलीज ऑर्डर’ मिलेगा और फिर आप अपनी गाड़ी वापस ले सकते हैं। यदि वाहन मालिक के पास ड्राइविंग लाइसेंस या आरसी नहीं है, तो वह किसी अधिकृत व्यक्ति के माध्यम से वाहन छुड़वा सकता है।

यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि उसकी गाड़ी सही जगह खड़ी थी और फिर भी उसे टो किया गया, तो वह कानूनी कार्रवाई भी कर सकता है। इसके लिए वह उपभोक्ता अदालत या लोक शिकायत प्राधिकरण में शिकायत दर्ज करा सकता है। कई मामलों में न्यायालयों ने ट्रैफिक पुलिस की मनमानी पर टिप्पणी भी की है और गलत तरीके से उठाए गए वाहनों के लिए मुआवजा देने के आदेश दिए हैं।

इसके साथ ही तकनीक ने भी इस क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाई है। अब चालान और टोइंग की जानकारी mParivahan ऐप, E-Challan ऐप और SMS के माध्यम से मिल जाती है। इससे वाहन मालिक को यह जानने में आसानी होती है कि उसकी गाड़ी कहां है और क्या चालान जमा करना है। कुछ शहरों में ट्रैफिक पुलिस अब गाड़ी टो करने से पहले वाहन मालिक को कॉल या मैसेज भी करती है।

इस पूरी प्रक्रिया में सबसे अहम बात यह है कि ट्रैफिक पुलिस और वाहन मालिक दोनों ही अपने कर्तव्यों और अधिकारों से अवगत हों। पुलिस को नियमों का पालन करते हुए मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, वहीं वाहन मालिक को यह समझना चाहिए कि गाड़ी कहां और कैसे पार्क की जा रही है। यदि हम सभी नागरिक ट्रैफिक नियमों का पालन करें और अपनी जिम्मेदारी समझें, तो टोइंग जैसी समस्याएं अपने आप कम हो जाएंगी।

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि हां, पुलिस आपकी गाड़ी को बिना आपकी जानकारी के टो कर सकती है, लेकिन यह तभी होता है जब गाड़ी नियमों के खिलाफ खड़ी हो या यातायात में बाधा उत्पन्न कर रही हो। हालांकि, पुलिस को भी एक निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होता है, और वाहन मालिक के पास भी अधिकार होते हैं कि वह गलत कार्रवाई का विरोध कर सके। जागरूकता, नियमों की जानकारी और तकनीक का सही उपयोग ही इस तरह की परेशानियों से बचने का सबसे बेहतर तरीका है।

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